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इन दिनों असहिष्णुता की चर्चा ज़ोरों पर है. देशभक्ति तथा अभिव्यक्ति को संविधान में क्या उचित स्थान है इस पर भी बहस का जोर है. क्या हमारी आस्था संविधान में कम और सम्प्रदायिकता में हम अधिक लिप्त है. यह भी बहस का विषय है कि हमारी प्रवृत्ति इतनी कुटिल हो गई है कि समाज में सरकारी ढंग से हिन्दू और मुसलमान में भेद किया जाता हैं और मुसलमानों को सुविधाएं आगे बढ़ने की नहीं मिलती हैं. यह बहुत ही विनाशकारी सोच है. मैं हिन्दुत्व के मसले पर कविता के माध्यम से अपनी बात आप तक पहुंचाना चाहूँगा.
कविता का शीर्षक है राष्ट्र परिचय.
साम्प्रदायिकता की अग्नि में भारत की संतान जली
उसके बाद की घटनाओं में भी भारत की संतान जली
भारतवासी जाग उठो, देखो तुमने क्या पाया है
धर्मांध की अग्नि में तुमने अपना ही घर जलाया है
लूटमार हिंसा हत्या और बलात्कार का राज हुआ
भारत की धर्मं- नैसर्गिक नीति का मस्तक नीचा आज हुआ
हम उसकी क्या बात करें जो सीमा के बाहर है
जाति धर्मं आधारित घृणा की ज्वाला जब अपने ही अन्दर है
जाति धर्मं की जो राजनीति है उसको बदलना होगा
जाति धर्मं की विधि विधान को राजनीति से अलग करना होगा
देशप्रेम राजनीति नहीं, न धर्मं का इससे नाता है
धर्म हमारा जो भी हो भारत का सबसे नाता है
धरती से नाता है समान हम हिन्दू हों या मुसलमान
सिक्ख इसाई जैन बुद्ध हों भारत से नाता है समान
एक समन्वित राष्ट परिचय हो, हम उसका सम्मान करें
हिंदुस्तान की पुण्य धरती का सब मिल हम गुणगान करें
हिंदुस्तान शब्द से निकला हिंदुत्व हमारा परिचय है
यह मत समझो इस परिचय से हिन्दू धर्मं का आशय है
इस शब्द पर सबका अधिकार है हम हैं हिन्दुस्तानी
इस शब्द की मर्यादा समझे हर नागरिक स्वाभिमानी
यह परिचय सुद्ध्र्ड करेगा आपस का सम्बन्ध
हम होंगे सबल प्रबल एकजुट और अनुबंध
हिंदुत्व की महिमा बढ़ेगी देश का सम्मान होगा
देश का नेता कभी हिन्दू कभी मुसलमान होगा
धर्मं की इस एकता की पक्की करो दीवार भाई
तब कहीं इस देश का कल्याण और नव निर्माण होगा
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आशा करता हूँ यह कविता समयानुकूल है.
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